बहुत नज़दीक आते जा रहे हो, बिछड़ने का इरादा कर लिया है क्या।।
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कागज पर गम को
कागज पर गम को उतारने के अंदाज ना होते, मर ही गए होते अगर शायरी के अलफ़ाज़ ना होते।।
इश्क तुझ से
इश्क तुझ से बुरा नहीं कोई, हर भले का बुरा किया है तूने।।
मुझसे हर बार
मुझसे हर बार नजरें चुरा लेता है वो मैंने कागज पर भी बना कर देखी है आँखें उसकी
करूँ क्यों फ़िक्र
करूँ क्यों फ़िक्र कि मौत के बाद जगह कहाँ मिलेगी जहाँ होगी महफिल यारो की मेरी रूह वहा मिलेगी|
मैं तुझसे अब
मैं तुझसे अब कुछ नहीं मांगता ऐ ख़ुदा, तेरी देकर छीन लेने की आदत मुझे मंज़ूर नहीं।।
अकेले कैसे रहा जाता है
अकेले कैसे रहा जाता है, कुछ लोग यही सिखाने हमारी ज़िन्दगी में आते हैं।।
तडप तो कुछ भी नहीं है
मेरी तडप तो कुछ भी नहीं है , सुना है उसके दीदार को तो आईने भी तरसते है ।
मैं इस काबिल तो नही
मैं इस काबिल तो नही ,कि कोई अपना समझे… पर इतना यकीन है… कोई अफसोस जरूर करेगा;मुझे खो देने के बाद !!
लगने दो आज महफ़िल
लगने दो आज महफ़िल, चलो आज शायरी की जुबां बहते हैं . तुम उठा लाओ “ग़ालिब” की किताब,हम अपना हाल-ए-दिल कहते हैं.|