दो गज़ ज़मीन नसीब हो गयी यही बहुत है, सिकंदरो को अब जहान सारा मुबारक हो|
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मुद्दत से तमन्नाएं
मुद्दत से तमन्नाएं सजी बैठी हैं दिल में इस घर में बड़े लोगों का रिश्ता नही आता |
टूट पड़ती थीं
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देखकर वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए|
मीठे बोल बोलि
मीठे बोल बोलिए क्योंकि अल्फाजों में जान होती है, इन्हीं से आरती, अरदास और अजान होती है|
है अजीब शहर की
है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है
छोड़ ये बात
छोड़ ये बात,… मिले जख्म,….. मुझे कहां से, ऐ ज़िन्दगी इतना बता, कितना सफर बाकी है…
हम भी शामिल हैं
हम भी शामिल हैं खेल में लेकिन सिर्फ सिक्का उछालने के लिए.!
पलको पे बिठा के
पलको पे बिठा के रखेगे ससुराल वाले…. मालूम ना था बाबा भी झूठ बोलेगे…..
सुनते आये है
सुनते आये है की पानी से कट जाते है पत्थर, शायद मेरे आँसुओं की धार ही थोड़ी कम रही होगी..!
हर मर्ज की दवा है
हर मर्ज की दवा है वक्त .. कभी मर्ज खतम, कभी मरीज खतम..।