गिनती तो नहीं याद, मगर याद है इतना सब ज़ख्म बहारों के ज़माने में लगे हैं…
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कागज़ कलम मैं
कागज़ कलम मैं तकिये के पास रखता हूँ, दिन में वक्त नहीं मिलता,मैं तुम्हें नींद में लिखता हूँ..
हम उसके बिन हो गये है
हम उसके बिन हो गये है सुनसान से, जैसे अर्थी उठ गयी हो किसी मकान से !!
तुम रूक के नहीं
तुम रूक के नहीं मिलते हम झुक के नहीं मिलते मालूम ये होता है कुछ तुम भी हो कुछ हम भी|
मैं अपने शहर के
मैं अपने शहर के लोगों से ख़ूब वाकिफ़ हूँ हरेक हाथ का पत्थर मेरी निगाह में है|
सौदेबाजी का हुनर
सौदेबाजी का हुनर कोई उनसे सीखे, गालों का तिल दिखाकर सीने का दिल ले गये !
तुम निकले ही थे
तुम निकले ही थे बन-सँवर कर मैं मरता नहीं तो क्या करता…
बस आखरी बार
बस आखरी बार इस तरह मिल जाना, मुझ को रख लेना या मुझ में रह जाना !!
आईना हूं तेरा
आईना हूं तेरा, क्यूं इतना कतरा रहे हो.. सच ही कहूंगा, क्यूं इतना घबरा रहे हो..
जिम्मेदारिया जब कंधो पर
जिम्मेदारिया जब कंधो पर पडती है, तो अक्सर बचपन याद आता है..