बिन धागे की सुई

बिन धागे की सुई सी है ये ज़िंदगी….. सिलती कुछ नहीं, बस चुभती जा रही है.

खूब हूँ वाकिफ दुनिया से

खूब हूँ वाकिफ दुनिया से, बस खुद से अनजान हूँ..

कितना किराया लोगे

कितना किराया लोगे ऐ किराए के कातिलों, मुझे इश्क का सर कलम चाहिए…!!!

मैं कौन था

मैं कौन था पहले कोई पहचानता न था.., तुम क्या मिले,ज़माने में मशहूर हो गया ।

किसी ने रख दिए

किसी ने रख दिए ममता भरे दो हाथ…क्या सर पर, मेरे अन्दर कोई बच्चा…….बिलख कर रोने लगता है.!!

काफ़िला गुजर गया

काफ़िला गुजर गया जख्म देकर । रास्ता उदास है अब मेरी तरह ।।

जाते जाते अपने साथ..

जाते जाते अपने साथ.. ..अपनी खुशबुए भी ले जाते.. । ..अब जो हवा भी चलती है.. ..तो लगता है तुम आये हो.. ।।

बदला न अपने-आप को

बदला न अपने-आप को जो थे वही रहे… मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे..

उस दुकान का पता

दो जहाँ लिखा हो, साहिब टूटे दिल का काम तसल्ली-बक्श किया जाता हैं..

अब न वो

अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है, जैसे दो साए तमन्ना के सराबों में मिलें…

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