लफ़्ज़ों को यूं कम ना आंकिये, चंद जो इक्कठे हो जाएँ तो शेर हो जाते हैं।
Tag: व्यंग्य
जज़्बातों में ढल के
जज़्बातों में ढल के यूं , दिल में उतर गया बन के मेरी वो आदत , अब खुद बदल गया..
सोचा था घर बनाकर
सोचा था घर बनाकर बेठुंगा सुकून से, पर घर की जरूरतों ने मुसाफिर बना डाला..!!
मेरा और उस चाँद का
मेरा और उस चाँद का मुकद्दर एक सा है…. वो तारों में तन्हा है, मैं हजारों में तन्हा।
जाने किन कर्मों की सजा
मुझे न जाने किन कर्मों की सजा देते हैं. आख़िरी घूँट हूँ ,बहुत लोग छोड़ देते हैं .!!
जुबां की खामोशी
जुबां की खामोशी पर मत जाओ, राख के नीचे हमेशा आग दबी होती है।
शायरी का रंग
शायरी का रंग और भी गुलनार हो जाता है, जब दो शायरों को एक दूसरे से प्यार हो जाता है..
निगाहों से छुप कर
निगाहों से छुप कर कहाँ जाइएगा जहाँ जाइएगा, हमें पाइएगा मिटा कर हमें आप पछताइएगा कमी कोई महसूस फ़र्माइएगा नहीं खेल नासेह! जुनूँ की हक़ीक़त समझ लीजिए तो समझाइएगा कहीं चुप रही है ज़बाने-मोहब्बत न फ़र्माइएगा तो फ़र्माइएगा
होता अगर मुमकिन
होता अगर मुमकिन, तुझे साँस बना कर रखते सीने में, तू रुक जाये तो मैं नही, मैं मर जाऊँ तो तू नही…
इस तरह तुमने
इस तरह तुमने मुझे छोड़ दिया …. जैसे रास्ता कोई गुनाह का हो