ना जाने किसका

ना जाने किसका मुकद्दर संवरने वाला है…! वो एक किताब मे चिट्ठी छुपा के निकली है…

मैं तो फिर भी

मैं तो फिर भी इंसान हूँ,बहक जाना फितरत में शामिल है मेरी हवा भी उसको छूने के बाद देर तक नशे में रहती है|

है क़यामत भी

है क़यामत भी एक चीज़ लेकिन देखना,तेरी अंगड़ाई जीत जायेगी

दुश्मनों के खेमें में

दुश्मनों के खेमें में चल रही थी मेरे क़त्ल की साज़िश मैं पहुंचा तो वो बोले “यार तेरी उम्र बहुत लंबी हैं”

न जाने क्यूँ

न जाने क्यूँ हमें इस दम तुम्हारी याद आती है, जब आँखों में चमकते हैं सितारे शाम से पहले….

यूँ ही गुजर जाती है

यूँ ही गुजर जाती है शाम अंजुमन में, कुछ तेरी आँखों के बहाने कुछ तेरी बातो के बहाने!

लगी है मेहंदी

लगी है मेहंदी पावँ में क्या घूमोगे गावं मे… असर धूप का क्या जाने जो रहते है छावं मे…!!

करलो एक बार

करलो एक बार याद मुझको…. हिचकियाँ आए भी ज़माना हो गया

मोहब्बत का असर

मोहब्बत का असर मुझ से मत पूछ ऎ हमराह , तेरे बग़ैर भी हम उम्र भर तेरे रहेगें|

चल अब मेरी

चल अब मेरी साँस की जमानत रखा ले तू शायद इस तहर में बन जाऊ तेरे एतबार के काबिल.

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