एक पुरानी तस्वीर जिसमे तुमने बिंदी लगाई है, मै अक्सर उसे रात में चाँद समझ के देख लेता हूँ|
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मुद्दत हो गयी
मुद्दत हो गयी, कोइ शख्स तो अब ऐसा मिले…!!! बाहर से जो दिखता हो, अन्दर भी वैसा ही मिले..
सफ़र में धूप तो होगी
सफ़र में धूप तो होगी, जो चल सको तो चलो.. सभी है भीड़ में, तुम भी निकल सको तो चलो.!
बस इतना ही जाना है
बस इतना ही जाना है मुझे तुमने दूर ही रहो जितना, जेहन में उतर आऊंगा|
ये सुलगते जज्बात
ये सुलगते जज्बात दे रहे है गवाही क्यों तुम भी हो न इस इश्क़ के भवर में|
मेरा ज़िक्र ही नहीं
मेरा ज़िक्र ही नहीं उस किताब में जिसे ताउम्र पढता रहा हूँ मैं
तू भले ही
तू भले ही रत्ती भर ना सुनती है मै तेरा नाम बुदबुदाता रहता हूँ
मेरा सब से बड़ा डर
मेरा सब से बड़ा डर यह है, कि कहीं आप मुझे भूल तो नहीं जाओगे !!
पाया भी उन को
पाया भी उन को खो भी दिया चुप भी हो रहे, इक मुख़्तसर सी रात में सदियाँ गुज़र गईं…
शाख़ पर रह कर
शाख़ पर रह कर कहाँ मुमकिन था मेरा ये सफ़र, अब हवा ने अपने हाथों में सँभाला है मुझे…