बिछड़कर फिर मिलेंगे

बिछड़कर फिर मिलेंगे यकीन कितना था… बेशक ख्वाब ही था मगर.. हसीन कितना था…

मुकद्दर की लिखावट

मुकद्दर की लिखावट का एक ऐसा भी कायदा हो, देर से क़िस्मत खुलने वालों का दुगुना फ़ायदा हो।

तेरा हुस्न एक जवाब

तेरा हुस्न एक जवाब,मेरा इश्क एक सवाल ही सही तेरे मिलने कि ख़ुशी नही,तुझसे दुरी का मलाल ही सही तू न जान हाल इस दिल का,कोई बात नही तू नही जिंदगी मे तो तेरा ख़याल ही सही|

बर्बाद करना था

बर्बाद करना था तो किसी और तरीके से करते। जिंदगी बनकर जिंदगी ही छीन ली।

ना कोई ख्वाहिश..

ना कोई ख्वाहिश.. …….ना कोई आरजू.. थोड़ी बेमतलब सी है जिंदगी.. फिर भी जीना अच्छा लगता है..।

ये तो मोहब्बत थी

ये तो मोहब्बत थी तुमसे जो तेरी बेवफ़ाई बर्दास्त कर गया। ऐ बेवफा वरना तेरे सीने से वो दिल निकाल लेता जो मोहब्बत के काबिल ना था।

वो एक रात जला……

वो एक रात जला……. तो उसे चिराग कह दिया !!! हम बरसो से जल रहे है ! कोई तो खिताब दो .!!!

बहते पानी की तरह

बहते पानी की तरह है फितरत- ए-इश्क, रुकता नहीं,थकता नहीं,थमता नहीं, मिलता नहीं…

सिर्फ नाम लिख देने से

सिर्फ नाम लिख देने से शायरी अपनी नहीं हो जाती, दिल तुड़वाना पड़ता है कुछ दिल से लिखने के लिये !!

छत कहाँ थी

छत कहाँ थी नशीब में, फुटपाथ को जागीर समझ बैठे। गीले चावल में शक्कर क्या गिरी ,बच्चे खीर समाज बैठे।

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