बाँटने निकला है

बाँटने निकला है वो फूलों के तोहफ़े शहर में, इस ख़बर पर हम ने भी, गुल-दान ख़ाली कर दिया|

ये जो तेरा होकर भी

ये जो तेरा होकर भी ना होने का अहसास है… बस ये अधूरापन ही मुझे जीने नहीं देता|

उम्र भर ख़्वाबों की

उम्र भर ख़्वाबों की मंज़िल का सफ़र जारी रहा, ज़िंदगी भर तजुरबों के ज़ख़्म काम आते रहे…

बस इतना ही जाना है

बस इतना ही जाना है मुझे तुमने दूर ही रहो जितना, जेहन में उतर आऊंगा|

तुम दूर भी

तुम दूर भी हो पर लगता है यही हो तुम कहो इश्क़ में तुम्हारा क्या हाल है|

मेरा ज़िक्र ही नहीं

मेरा ज़िक्र ही नहीं उस किताब में जिसे ताउम्र पढता रहा हूँ मैं

मेरा सब से बड़ा डर

मेरा सब से बड़ा डर यह है, कि कहीं आप मुझे भूल तो नहीं जाओगे !!

मुझे कहाँ से

मुझे कहाँ से आएगा लोगो का दिल जीतना …!! मै तो अपना भी हार बैठी हूँ..!!

तुम इतने कठिन क्यूँ हो

तुम इतने कठिन क्यूँ हो की मैं तुम्हे समझ नहीं पाता, थोड़े से सरल हो जाओ सिर्फ मेरे लिए !!

रब के फ़ैसले पर

रब के फ़ैसले पर भला कैसे करुँ शक, सजा दे रहा है ग़र वो कुछ तो गुनाह रहा होगा !!

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