कहीं भी यूँ एकटक

कहीं भी यूँ एकटक देखते रहना,, हर आदत तेरी दी हुई लगती हैं।।

इक लफ्ज़ था

इक लफ्ज़ था मैं आधा अधूरा सा, रहबर से जुड़ा और कहानी बन गया !

शिकायते तो बहुत है

शिकायते तो बहुत है तुझसे ऐ जिन्दगी …!! पर चुप इसलिये हु कि, जो दिया तूने,वो भी बहुतो को नसीब नहीं होता …!!

इतना संस्कारिक कलयुग

इतना संस्कारिक कलयुग आ गया है कि लड़की कि विदाई के वक्त.. माँ बाप से ज्यादा तो मोहल्ले के लड़के रो देते है

तेरी जगह आज भी

तेरी जगह आज भी कोई नही ले सकता खूबी तूजमे नही कमी मुझमें है

फूलों की तरह

हम तो फूलों की तरह अपनी आदत से बेबस हैं। तोडने वाले को भी खुशबू की सजा देते हैं।

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