बेशक हासिल कुछ भी

बेशक हासिल कुछ भी नहीं उन्हें मगर फिर भी.. खुश है कुछ लोग अपनों को ही परेशान करके…

गम बिछड़ने का नहीं

गम बिछड़ने का नहीं करते खानाबदोश वो तो वीराने बसाने का हुनर जानते हैं|

महसूस कर रहा हूँ

महसूस कर रहा हूँ मैं खुद को अकेला काश़…तू आके कह दे…मैं हूँ तेरी ..

सब ही तारीफ़ करते हैं

सब ही तारीफ़ करते हैं मेरी तहरीरों की, कभी कोई नहीं सुनता मेरे लफ़्ज़ों की सिसकियां |

मत कूदो उस समंदर मे

मत कूदो उस समंदर मे जिसका कोई साहिल ना हो . आज हम तुम्हारे काबिल नही शायद कल तुम हमारे काबिल ना हो

हम भी फूलों कि तरह

हम भी फूलों कि तरह अपनी आदत से मजबूर है तोड़ने वाले को भी खूशबू की सजा देते है…!!

ऐ खुदा अगर

ऐ खुदा अगर तेरे पेन की स्याही खत्म हो गयी हो तो मेरा लहू लेले बस….यु कहानिया अधूरी न लिखा कर.

ज़ख़्म दे कर

ज़ख़्म दे कर ना पूछा करो, दर्द की शिद्दत, दर्द तो दर्द होता हैं, थोड़ा क्या, ज्यादा क्या

कभी जरूरत पड़े तो

कभी जरूरत पड़े तो आवाज दे देना हमें, मैं गुजरा हुआ वक्त नहीं जो वापस न आ सकूँ”…

बंद कर दिए हैं

बंद कर दिए हैं हम ने दरवाज़े इश्क के, पर तेरी याद है कि दरारों से भी आ जाती है|

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