अनजाने में यूँ ही

अनजाने में यूँ ही हम दिल गँवा बैठे, इस प्यार में कैसे धोखा खा बैठे, उनसे क्या गिला करें.. भूल तो हमारी थी जो बिना दिलवालों से ही दिल लगा बैठे।

सूरज ढला तो

सूरज ढला तो कद से ऊँचे हो गए साये कभी पैरों से रौंदी थी यहीं परछाइयां हमने …!!

आँखों में तेरी डूब जाने को

आँखों में तेरी डूब जाने को दिल चाहता है! इश्क में तेरे बर्बाद होने को दिल चाहता है! कोई संभाले मुझे, बहक रहे है मेरे कदम! वफ़ा में तेरी मर जाने को दिल चाहता है!

जख्म तो हम भी

जख्म तो हम भी अपने दिल में बहुत गहरे रखते हैं मगर हम जख्मों पे मुस्कुराहटों के पहरे रखते हैं..!!

ये हर सुबह

ये हर सुबह इश्क के जलसे ये हर रात जुदाई के जुलुस … ये बेरोजगार शायर बनना तुम्हारे नौकरी जितना आसान थोड़े है ।

बड़ी तबियत से

बड़ी तबियत से पूछा उसने कि कौन हूँ मैं. हमने भी जवाब दिया हर लफ्ज़ को तुझसे जोड़कर शायरी कर लूँ वो वजह हो तुम।

बहुत झुका हुआ

बहुत झुका हुआ जब आसमान होता है तो सर उठाना भी इक इम्तहान होता है|

तुम आ जाओ मेरी

तुम आ जाओ मेरी कलम की स्याही बनकर.. मैं तुम्हें अपनी ज़िन्दगी के हर पन्ने में उतार दूँगा

घर की छत से

आप तो अपने ही घर की छत से घबराने लगे जिनके सर पे आसमां है उनकी हिम्मत देखिये

थोड़ी सी खुद्दारी

थोड़ी सी खुद्दारी भी लाज़मी थी, उसने हाथ छुड़ाया मैंने छोड़ दिया|

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