गिनती तो नहीं याद

गिनती तो नहीं याद, मगर याद है इतना सब ज़ख्म बहारों के ज़माने में लगे हैं…

सहम सी गयी है

सहम सी गयी है ख्वाइशें.. जरूरतों ने शायद उनसे….ऊँची आवाज़ में बात की होगी।

तारीखें… हज़ारों साल में

तारीखें… हज़ारों साल में बस इतनी ही बदली,पहले दौर था पत्थरों का,अब लोग हैं पत्थरों के…!!

ए खुदा मौसम को

ए खुदा मौसम को इतना रोमांटिक भी ना कर कुछ लोग ऐसे भी है जिनका मेहबूब नहीं

इन्सान मार दिया जाता है

इन्सान मार दिया जाता है  तो कोई कुछ नहीं बोलता जानवर काट दिया तो दंगे भड़का देते है |

सब्र की रोटी को

सब्र की रोटी को हम सब बाँट कर के खाएंगे दिल बड़ा छोटा सा दस्तरख्वान है तो क्या हुआ

ज़ायके सैंकड़ों मौजूद थे

ज़ायके सैंकड़ों मौजूद थे लेकिन हम ने !! हिज्र का रोज़ा तेरी याद से इफ़्तार किया !!

उसने अपने दिल के

उसने अपने दिल के अंदर जब से नफरत पाली है। ऊपर ऊपर रौब झलकता अंदर खाली खाली है।।

सहम उठते हैं

सहम उठते हैं कच्चे मकान, पानी के खौफ़ से, महलों की आरज़ू ये है की, बरसात तेज हो…

रहने दो अब कोशिशे

रहने दो अब कोशिशे , तुम मुझे पढ़ भी ना सकोगे.. बरसात में कागज की तरह भीग के मिट गया हूँ मैं…

Exit mobile version