अजीब हूं मैं

अजीब हूं मैं भी कि अपने आप को गंवाना चाहता हूँ … कि अपने आप से पीछा छुड़ाना चाहता हूँ … !!

बात का ज़ख्म है

बात का ज़ख्म है तलवार के ज़ख़्मो के सिवा । कीजे क़त्ल मगर मुँह से कुछ इरशाद न हो ।।

सवाल ये नहीं

सवाल ये नहीं रफ्तार किसकी कितनी है … सवाल ये है सलीक़े से कौन चलता है…!!!

बयां नही कर सकता

लिख कर बयां नही कर सकता मैं हर गुफ़्तुगू, कुछ था जो बस नज़रों से नज़रों तक ही रहा..

आखरी हिचकी तेरे

आखरी हिचकी तेरे पहलू में आये मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ…

वो जब पास मेरे होगा

वो जब पास मेरे होगा तो शायद कयामत होगी…., अभी तो उसकी शायरी ने ही तवाही मचा रखी है.

बाँटने निकला है

बाँटने निकला है वो फूलों के तोहफ़े शहर में, इस ख़बर पर हम ने भी, गुल-दान ख़ाली कर दिया

आया था किस काम से

आया था किस काम से, तू सोया चादर तान। सूरत संभाल ए गाफिल, अपना आप पहचान।।

हो तू दुनिया में

हो तू दुनिया में मगर, दुनिया का तलबगार न हो। सिर्फ बाजार से गुजरे, पर इस से सरोकार न हो

थे तो बहुत मेरे भी

थे तो बहुत मेरे भी इस दुनियां में कहने को अपने, पर जब से हुआ है इश्क हम लावारिस हो गए !!

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