जा रही हूँ

जा रही हूँ मैं तेरी जिन्दगी से कभी ना फिर लौट के आने को , रोक लो अपने एहसासों को जो लिपट रहे मेरे कदमों से संग आने को !

न जाने इन आंखों को

न जाने इन आंखों को किसकी जुस्तजू है सारी रात देखता रहा घर के दहलीज को !

हर इक चेहरा

सहमा सहमा हर इक चेहरा, मंज़र मंज़र खून में तर.. शहर से जंगल ही अच्छा है, चल चिड़िया तू अपने घर.!

दिल की गली से

दिल की गली से तो गुजरे न जाने शक्स कितने पर , कोई एक पल कोई दो पल कोई रुका ना उम्र भर के लिए !

तलब उठती है

तलब उठती है बार-बार तेरे दीदार की; ना जाने देखते-देखते कब तुम लत बन गये।

ले चल कही दूर

ले चल कही दूर मुझे तेरे सिवा जहाँ कोई ना हो.. बाँहो मे सुला लेना मुझको फिर कोई सवेरा ना हो.

शायरी भी एक मीठा जुल्म है

शायरी भी एक मीठा जुल्म है करते रहो या ..या फिर …पढ़ते रहो….!!

कभी इश्क़ करो

कभी इश्क़ करो और फिर देखो इस आग में जलते रहने से.. कभी दिल पर आँच नहीं आती कभी रंग ख़राब नहीं होता…

कहाँ उलझा पड़ा है

कहाँ उलझा पड़ा है तू उन छोटी छोटी बातों में चल कोई बड़ी बात से हम अब ये रिश्ता ख़त्म करते हैं|

हुस्न वाले जब

हुस्न वाले जब तोड़ते हैं दिल किसी का, बड़ी सादगी से कहते है मजबूर थे हम.

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