जुल्फें खोली हैं

जुल्फें खोली हैं उन्होंने आज और…. सारा शहर बादलों को दुआ दे रहा है…

मेरे इक अश्क़ की

मेरे इक अश्क़ की तलब थी उसको मैंने बारिश को आँखों में बसा लिया |

उस की आँखों में

उस की आँखों में नज़र आता है सारा जहाँ मुझ को; अफ़सोस कि उन आँखों में कभी खुद को नहीं देखा मैंने।

सीधी और साफ हो…

परवाह नहीं चाहे जमाना कितना भी खिलाफ हो, चलूँगा उसी राह पर जो सीधी और साफ हो…!

कोई था दिल में

कोई था दिल में,जो खो गया है शायद वरना आईने में अश्क़ इतना धुन्धला ना होता..!!

बैठ कर किनारे पर

बैठ कर किनारे पर मेरा दीदार ना कर मुझको समझना है तो समन्दर में उतर के देख !!

वो लफ्ज़ कहा से

वो लफ्ज़ कहा से लाऊँ,जो तेरे दिल को मोम कर दे मेरा वजूद पिघल रहा है,तेरी बेरुखी से..!!

ज़िन्दगी के हाथ नहीं होते

ज़िन्दगी के हाथ नहीं होते लेकिन, कभी कभी वो ऐसा थप्पड़ मारती है जो पूरी उम्र याद रहता है !!

किन लफ्ज़ों में

किन लफ्ज़ों में बयाँ करूँ मैं एहमियत तेरी.. तेरे बिन अक्सर मैं अधुरा लगता हूँ..

तू सचमुच जुड़ा है

तू सचमुच जुड़ा है गर मेरी जिंदगी के साथ, तो कबूल कर मुझको मेरी हर कमी के साथ !!!

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