शुक्र करो कि दर्द सहते हैं, लिखते नहीं….!! वर्ना कागजों पे लफ्जों के जनाजे उठते…
Category: शर्म शायरी
हर रात एक
हर रात एक नाम याद आता है, कभी कभी सुबह शाम याद आता है, सोच रहा हू कर लूँ दूसरी मोहब्बत, पर फिर पहली मोहब्बत का अंजाम याद आता है..!!
चेहरे गुलाब नहीं होते
जाने क्यूँ अब शर्म, से चेहरे गुलाब नहीं होते। जाने क्यूँ अब, मस्त मौला मिजाज नहीं होते। पहले बता दिया करते थे, दिल की बातें। जाने क्यूँ अब चेहरे, खुली किताब नहीं होते।
दुनिया तो वैसे
दिल बङा रखें.. दुनिया तो वैसे भी ‘बहुत छोटी’ है…!
मौत से क्या
मौत से क्या डर मिनटों का खेल है आफत तो ज़िन्दगी है बरसों चला करती है.
जिन्दगी की जेब
बार बार रफू करता रहता हूँ जिन्दगी की जेब… कम्बखत फिर भी निकल जाते हैं खुशियों के कुछ लम्हें… ज़िन्दगी में सारा झगड़ा ही ख़्वाहिशों का है….. ना तो किसी को गम चाहिए और, ना ही किसी को कम चाहिए….!!!
वो अल्फाज़ जिसे
जिंदगी की थकान में गुम हो गया, वो अल्फाज़ जिसे “सुकून” कहते है…
Ye Haqikat Hai
Tum na mano ye haqikat hai. Dosti insan ki zarurat hai. Kisi din aao hamari mehfil me, Jan jaoge zindagi kitni khubsurat hai…
लोग होठों पे
लोग होठों पे सजाये हुए फिरते हैं मुझे मेरी शोहरत किसी अखबार की मोहताज नहीं
खुदा की मोहब्बत
खुदा की मोहब्बत को फना कौन करेगा? सभी बन्दे नेक हो तो गुनाह कौन करेगा?