दो अक्षर की मौत और तीन अक्षर के जीवन में, ढाई अक्षर का दोस्त हमेंशा बाज़ी मार जाता हैं…..
Category: व्यंग्य शायरी
जीने के दिन
खुँशीयॊ ने वादा किया कि वॊ पाँच दिन बाद आएगी, मगर कम्बख्त जिंदगी के कैलेंडर में देखा तॊ जीने के दिन ही चार थे ॥
कितनी ज़ालिम है
ये बारिश भी कितनी ज़ालिम हे जो यूँ ही आकर चली जाती है… .. याद दिलाती है मेरे मेहबूब की.. और भिगोकर मुझे चली जाती है……
मिट जाते है वो
मिट जाते है वो औरों को मिटाने वाले..! लाश कहा रोती है, रोते है जलाने वाले..!!!
Meri bhi nigaho
Meri bhi nigaho ka sunle abb sawal Poochte hai kab aayega Jhonka phir tere deedar ka
समझा दो अपनी
समझा दो अपनी यादो को, वो बिन बुलाए पास आया करती है, आप तो दूर रहकर सताते हो मगर, वो पास आकर रुलाया करती है…
देखा किये वो
देखा किये वो मस्त निगाहों से बार बार.. जब तक शराब आये कई दौर हो गए..!
इतने क़रीब ना था
मेरे घर से मयखाना इतने क़रीब ना था…!!! दोस्तों… कुछ लोग दूर होते गये और वो पास आ गया…!!!
खुशियाँ उतनी ही अच्छी
खुशियाँ उतनी ही अच्छी… जितनी मुट्ठियों मे समा जाए…. छलकती ,बिखरती खुशियो को… अक्सर नजर लग जाया करती है …
kismat mai nahi
Tune ek aise shaksh ko chaha hai RAJ jise bhoolna teri kismaat mai nahi or pana teri kismat mai nahi……..