तेरे होने पर

तेरे होने पर भी ये जो अकेलापन मारता है… पता नहीं, ये मेरी मुहब्बत की हार है या तेरी बेरुख़ी की जीत|

यह कैसी आग है

यह कैसी आग है जिसमें जल रहें है हम, जलते ही जा रहे, जले से राख बनते नहीं हम…!!

रोज़ थोड़ा थोड़ा

रोज़ थोड़ा थोड़ा मर रहा हूँ मैं… पर प्यार तुझसे ही कर रहा हूँ मैं

सोच में सारे

सोच में सारे परिन्दे सब के सब ख़ामोश हैं ! एक परिन्दा शाख़ पर जब शाम तक लौटा नहीं !!

चलो अब शाम हुई

चलो अब शाम हुई हम घर को चलते हैं, पंछियों का देर तक आवारा घूमना अच्छा नहीं होता…

नज़र उसकी चुभती है

नज़र उसकी चुभती है दिल में कटार की तरह तड़प कर रह जाता हूँ मैं किसी लाचार की तरह उसकी मुलाकात दिल को बड़ा सुकून देती है उससे मिल कर दिन गुज़रता है त्योहार की तरह|

पिघली हुई हैं

पिघली हुई हैं, गीली चांदनी, कच्ची रात का सपना आए थोड़ी सी जागी, थोड़ी सी सोयी, नींद में कोई अपना आए नींद में हल्की खुशबुएँ सी घुलने लगती हैं…

अपने ही साए में

अपने ही साए में था, मैं शायद छुपा हुआ, जब खुद ही हट गया, तो कही रास्ता मिला…..

किस्मत ऊपर वाला लिखता है . .

कहते है किस्मत ऊपर वाला लिखता है . . . ! फिर उसे क्यों लाता है ज़िन्दगी में जो किस्मत में नही होता|

सूरज रोज़ अब भी

सूरज रोज़ अब भी बेफ़िज़ूल ही निकलता है …. तुम गए हो जब से , उजाला नहीं हुआ …

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