सुनो, ठिकाने लगा दो मुझे, अब कोई ठिकाना नही मेरा।
Category: कविता
तुम्हारे लिए बस दुआ ही
तुम्हारे लिए बस दुआ ही निकली थी इन लबों से, सोचो जो बदुआ आई, कुछ तो बात रही होगी।
सबसे मुश्किल होता हैं
सबसे मुश्किल होता हैं उन जाने लोगो से बात करना, अंजानो की तरह। वो अनजाने लोग जिनपर कभी जान लुटाया करते थे।
हर बात में हारता था
हर बात में हारता था मैं उस से, उसे भी हार गया मैं उसी से।
उसको मिलने से पहले
उसको मिलने से पहले कहीं बार सोचा था, उस से मिलने के बाद कहीं बार सोचा हैं। वो जो मिलती हैं मुझे, मुझे मिल क्यूँ नही जाती..??
परेशान देखता हूँ आजकल
देखता हूँ आजकल चहेरे -चहेरे पर मैं एक , थकान देखता हूँ आजकल , जिसको देखो उसको, परेशान देखता हूँ आजकल ।। . परिंदों को नोचते हुये,आसमान देखता हूँ आजकल , कश्तियों से लड़ते हुये , तूफान देखता हूँ आजकल ।। . सरहद के इस पार , उस पार , जब से तनाव बढ़ा ,… Continue reading परेशान देखता हूँ आजकल
बुलंदियो को पाने की ख्वाहिश तो बहुत है
बुलंदियो को पाने की ख्वाहिश तो बहुत है मगर , दूसरों को रौंदने का हुनर कहां से लाऊं….
जिसकी तलवार की छनक से अकबर
जिसकी तलवार की छनक से अकबर का दिल घबराता था वो अजर अमर वो शूरवीर वो महाराणा कहला ता था फीका पड़ता था तेज सूरज का , जब माथा ऊचा करता था , थी तुझमे कोई बात राणा , अकबर भी तुझसे ड रता था
जो आपके इंतज़ार में गुज़रती है
जो आपके इंतज़ार में गुज़रती है,बहुत मसरुफ़ होने पर भी वो फ़ुरसत कम नही होती……
हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ
हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए तुम्हारा घर भी इसी शहर के हिसार में है लगी है आग कहाँ क्यूँ पता किया जाए जुदा है हीर से राँझा कई ज़मानों से नए सिरे से कहानी को फिर लिखा जाए कहा गया है सितारों को छूना… Continue reading हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ