क्या है? हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है? तुम ही कहो कि ये अंदाज़-ए-ग़ुफ़्तगू क्या है? रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है? चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन हमारी जेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है?… Continue reading क्या है
Category: कविता
टूट गया
टूट गया समझौतों की भीड़-भाड़ में सबसे रिश्ता टूट गया इतने घुटने टेके हमने, आख़िर घुटना टूट गया देख शिकारी तेरे कारण एक परिन्दा टूट गया, पत्थर का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन शीशा टूट गया घर का बोझ उठाने वाले बचपन की तक़दीर न पूछ बच्चा घर से काम पे निकला और खिलौना टूट… Continue reading टूट गया
लेती नहीं दवाई माँ, जोड़े पाई-पाई माँ।
माँ लेती नहीं दवाई माँ, जोड़े पाई-पाई माँ। दुःख थे पर्वत, राई माँ हारी नहीं लड़ाई माँ। इस दुनिया में सब मैले हैं, किस दुनिया से आई माँ। दुनिया के सब रिश्ते ठंडे, गरमागर्म रजाई माँ। जब भी कोई रिश्ता उधड़े, करती है तुरपाई माँ। बाबू जी तनख़ा लाए बस, लेकिन बरक़त लाई माँ। बाबूजी के पांव दबा कर, सब तीरथ हो आई माँ।… Continue reading लेती नहीं दवाई माँ, जोड़े पाई-पाई माँ।
सोनेरी संध्या…
सोनेरी संध्या.. उँगलियाँ यूँ न सब पर उठाया करो खर्च करने से पहले कमाया करो ज़िन्दगी क्या है खुद ही समझ जाओगे बारिशों में पतंगें उड़ाया करो दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर नीम की पत्तियों को चबाया करो शाम के बाद जब तुम सहर देख लो कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो अपने सीने… Continue reading सोनेरी संध्या…