ज्यादा कुछ नही बदला उम्र बढ़ने के साथ… बचपन की जिद समझौतों में बदल गयी…!!
Category: व्यंग्य शायरी
तेरा हाथ छूट जाने से
तेरा हाथ छूट जाने से डरता हूँ मैं दिल के टूट जाने से डरता हूँ|
कभी-कभी बहुत सताता है
कभी-कभी बहुत सताता है यह सवाल मुझे.. हम मिले ही क्यूं थे जब हमें मिलना ही नहीं था…
यही हुस्नो-इश्क का राज है
यही हुस्नो-इश्क का राज है कोई राज इसके सिवा नहीं जो खुदा नहीं तो खुदी नही, जो खुदी नहीं तो खुदा नहीं
इतनी बिखर जाती है
इतनी बिखर जाती है तुम्हारे नाम की खुशबु मेरे लफ़्जों मे..! की लोग पुछने लगते है “इतनी महकती क्युँ है शायरी तुम्हारी..??
तुम नहीं हो तो
तुम नहीं हो तो , कोई आरजू नहीं; बातें नही; नींद नहीं… जागे हुए है, ख्वाब सारे; सिमटती हुई रात के साथ…
देखे हैं बहुत हम ने
देखे हैं बहुत हम ने हंगामे मोहब्बत के आग़ाज़ भी रुस्वाई …..अंजाम भी रुस्वाई….
ख़ुश हो ऐ दिल
ख़ुश हो ऐ दिल कि मोहब्बत तो निभा दी तू ने लोग उजड़ जाते हैं अंजाम से पहले पहले
आशिकी से मिलेगा
आशिकी से मिलेगा ऐ जाहिद, बंदगी से खुदा नहीं मिलता।
हमारे बाद अंधेरा
हमारे बाद अंधेरा रहेगा महफ़िल में बहुत चराग़ जलाओगे रौशनी के लिए