एक मैं हूँ

एक मैं हूँ कि समझा नहीं खुद को अब तक… एक दुनिया है कि ना जाने मुझे क्या-क्या समझ लेती है…!!

मुश्किलें हालात में

मुश्किलें हालात में उन्हीं अपनो ने साथ छोड दिया जो कभी कहते थे पराये साथ नहीं देते.

यह भी अन्दाज़ है

तेरी बात “ख़ामोशी” से मान लेना !! यह भी अन्दाज़ है, मेरी नाराज़गी का|

ये बात और है कि

ये बात और है कि मै गरीब हूँ मगर हमेशा…मुझको पैसे से ज्यादा तेरी कमी खली…

वक्त आया कि

वक्त आया कि अब खुद को बदनाम कहें। हो रही हो खूब सुबह मगर हम शाम कहें

वो वक्त मेरा नही था

वो वक्त मेरा नही था, इसका मतलब ये नही के वो इश्क नही था|

अपनी इन नशीली आंखो को

अपनी इन नशीली आंखो को जरा झुका दीजीए मोहतरमा.. मेरे मजहब मे नशा हराम है..

जहाँ कमरों में

जहाँ कमरों में क़ैद हो जाती है “जिंदगी”… लोग उसे शहर कहते हैं….!!

बहुत आसान है

बहुत आसान है पहचान इसकी…., अगर दुखता नहीं है तो “दिल” नहीं है….।

यूँ गुमसुम मत बैठो

यूँ गुमसुम मत बैठो पराये से लगते हो, मीठी बातें नहीं करना है तो चलो झगड़ा ही कर लो…!!

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