कभी इतना मत मुस्कुराना

कभी इतना मत मुस्कुराना की नजर लग जाए जमाने की, हर आँख मेरी तरह मोहब्बत की नही होती….!!!

फासलों का एहसास

फासलों का एहसास तो तब हुआ…!! जब मैनें कहा “मैं ठीक हूँ” और ‘उसने’ मान भी लिया…!

अल्फ़ाज़ के कुछ

अल्फ़ाज़ के कुछ तो कंकर फ़ेंको, यहाँ झील सी गहरी ख़ामोशी है।

एक मैं हूँ

एक मैं हूँ कि समझा नहीं खुद को अब तक… एक दुनिया है कि ना जाने मुझे क्या-क्या समझ लेती है…!!

मुश्किलें हालात में

मुश्किलें हालात में उन्हीं अपनो ने साथ छोड दिया जो कभी कहते थे पराये साथ नहीं देते.

यह भी अन्दाज़ है

तेरी बात “ख़ामोशी” से मान लेना !! यह भी अन्दाज़ है, मेरी नाराज़गी का|

वक्त आया कि

वक्त आया कि अब खुद को बदनाम कहें। हो रही हो खूब सुबह मगर हम शाम कहें

वो वक्त मेरा नही था

वो वक्त मेरा नही था, इसका मतलब ये नही के वो इश्क नही था|

अपनी इन नशीली आंखो को

अपनी इन नशीली आंखो को जरा झुका दीजीए मोहतरमा.. मेरे मजहब मे नशा हराम है..

जहाँ कमरों में

जहाँ कमरों में क़ैद हो जाती है “जिंदगी”… लोग उसे शहर कहते हैं….!!

Exit mobile version