क्या ऐसा नहीँ

क्या ऐसा नहीँ हो सकता की हम प्यार मांगे, और तुम गले लगा के कहो… और कुछ….??

मत इन्हें उछाल

लफ़्ज़ “आईने” हैं मत इन्हें उछाल के चल, “अदब” की “राह” मिली है तो “देखभाल” के चल मिली है “ज़िन्दगी” तुझे इसी ही “मकसद” से, “सँभाल” “खुद” को भी और “औरों” को “सँभाल” के चल “

गज़ल को पढ़कर

पहली बार किसी गज़ल को पढ़कर आंसू आ गए । , शख्सियत, ए ‘लख्ते-जिगर, कहला न सका । जन्नत,, के धनी “पैर,, कभी सहला न सका । . दुध, पिलाया उसने छाती से निचोड़कर, मैं ‘निकम्मा, कभी 1 ग्लास पानी पिला न सका । . बुढापे का “सहारा,, हूँ ‘अहसास’ दिला न सका पेट पर… Continue reading गज़ल को पढ़कर

ज़िन्दगी बदलने के लिए

ज़िन्दगी बदलने के लिए लड़ना पड़ता है और आसान करने के लिए समझना पड़ता है!

बडी खामोशी से

बडी खामोशी से भेजा था गुलाब उसको… पर खुशबू ने शहर भर में तमाशा कर दिया

गुमान न कर

इतना भी गुमान न कर आपनी जीत पर ” ऐ बेखबर ” शहर में तेरे जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हैं।….।

मेरी हिम्मत को

मेरी हिम्मत को परखने की गुस्ताखी न करना, पहले भी कई तूफानों का रुख मोड़ चुका हु

उचाईओ पर चढ़ कर

सफलता की उचाईओ पर चढ़ कर, अहंकार कभी भी मत करना।। क्योंकि ढलान हमेशा, ऊपर से ही शुरू होता है।।।

डर मुझे भी लगा

डर मुझे भी लगा फांसला देख कर, पर मैं बढ़ता गया रास्ता देख कर, खुद ब खुद मेरे नज़दीक आती गई मेरी मंज़िल मेरा हौंसला देख कर.

जिसमें मतभेद के किले ढह जाएं

क्या ऐसा भूकंप नहीं आ सकता, जिसमें अहम टूट जाए, जिसमें मतभेद के किले ढह जाएं, जिसमें घमंड चूर चूर हो जाए, जिसमें गुस्से के पहाड़ पिघल जाए, जिसमे नफरत हमेशा के लिए दफ़न हो जाये, यदि ऐसा भूकंप आए तो …. दिल से स्वागत है

Exit mobile version