चले तो पाँव के नीचे

चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शय, नशे की झोंक में देखा नहीं कि दुनिया है।।

दफ़न कर देता

दफ़न कर देता मैं भी दिल की ख्वाहिशों को,.. काश ख्वाबो का भी कोई कब्रिस्तान होता…

धुंध हो जाते हैं

धुंध हो जाते हैं कई सपने, नींदों के अलाव जहाँ जलते हैं..

मैं इंसानियत में बसता हूँ

मैं इंसानियत में बसता हूँ और, लोग मुझे मज़हबो में ढूँढते है !!

चांदनी के भरोसें

रातों को चांदनी के भरोसें ना छोड़ना, सूरज ने जुगनुओं को ख़बरदार कर दिया… रुक रुक के लोग देख रहे है मेरी तरफ, तुमने ज़रा सी बात को अखबार कर दिया…

टूटे हुऐ होते हैं

शगुफ़्ता लोग भी टूटे हुऐ होते हैं अंदर से, .. बहुत रोते हैं वो लोग जिन्हें लतीफ़े याद रहते हैं ..

ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं

मौत का भी इलाज हो शायद ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं

महसूस जरूर होते हैं

बदलते लोग, बदलते रिश्ते और बदलता मौसम चाहे दिखाई ना दे, मगर महसूस जरूर होते हैं

अब तो कोयले भी

अब तो कोयले भी काले नही लगते जाना है अंदर से इंसानो को हमने!

कहने को मैं

कहने को मैं अकेला हूं,पर हम चार है, एक मैं, मेरी परछाई, मेरी तन्हाई और उसका एहसास

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