खुल सकती हैं रुमाल की गांठें बस ज़रा से जतन से मगर, लोग कैंचियां चला कर, सारा फ़साना बदल देते हैं.. !!!
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अपना क्या है
जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुक़सान हुआ
गुलाबों को नहीं
गुलाबों को नहीं आया अभी तक इस तरह खिलना.., सुबह को जिस तरह वो नींद से बे’दार होती है….
जिंदगी पर बस
जिंदगी पर बस इतना ही लिख पाया हूँ मैं…. बहुत मजबूत रिश्ते थे मेरे…. पर बहुत कमजोर लोगों से…..
रिवाज़ ही बदल गए
सुना था वफा मिला करती हैं मोहब्बत में…. हमारी बारी आई तो रिवाज़ ही बदल गए …
दिल बेजुबान है
दिल बेजुबान है तो क्या, तुम यूँ ही तोड़ते रहोगे..?!
कागज़ की नाव
बस इतनी सी बात समंदर को खल गईं, एक कागज़ की नाव मुझ पर कैसे चल गई!
तुम शराफत को
तुम शराफत को बाजार मे न लाया करो , ये वो सिक्का है जो कभी बाजार मे चला ही नही । अक्सर दिमाग वालों ने दिलवालो का इस्तेमाल ही किया है ।
अजीब सा दर्द
अजीब सा दर्द है इन दिनों यारों, न बताऊं तो ‘कायर’, बताऊँ तो ‘शायर’।।
शुक्र करो कि
शुक्र करो कि दर्द सहते हैं, लिखते नहीं….!! वर्ना कागजों पे लफ्जों के जनाजे उठते…