नाराज़ है वो

कुछ इस तरह से नाराज़ है वो हमसे, जैसे उन्हे किसी और ने मना लिया हो|

मुसाफिर ज़ख़्मी नहीं

कौन कहता है के मुसाफिर ज़ख़्मी नहीं होते, रास्ते गवाह है, बस कमबख्त गवाही नहीं देते ।।

इतना मालूम है

गिनती तो ठीक से सीखी नही, मगर… इतना मालूम है, खुसिया बाटने से बढ़ती है..!!

कभी तो हिसाब करो

कभी तो हिसाब करो हमारा भी, इतनी मोहब्बत भला देता कौन है… उधार में..!!

रंग बन कर

सिर्फ़ लहरा के रह गया आँचल रंग बन कर बिखर गया कोई………

मिला करो हमसे

दुश्मनी से मिलेगा क्या तुम को दोस्त बन कर मिला करो हमसे

प्यास के क़ाबिल

मिला जब भी समुन्दर सा मिला तू मेरी प्यास के क़ाबिल कहाँ था

तसल्ली के लिये

भूखे बच्चों की तसल्ली के लिये माँ ने फिर पानी पकाया देर तक गुनगुनाता जा रहा था इक फ़क़ीर धूप रहती है ना साया देर तक

दुख जमा कर सकते है।

“माँ” एक ऐसी ‘बैंक’ है जहाँ आप हर भावना और दुख जमा कर सकते है। और “पापा” एक ऐसा ‘क्रेडिट कार्ड’ है जिनके पास बैलेंस न होते हुए भी हमारे सपने पूरे करने की कोशिश करते है॥

लोग तरस जाते हैँ

हमारा अंदाज कुछ ऐसा है कि… जब हम बोलते हैँ तो बरस जाते हैँ.. और जब हम चुप रहते हैँ तो लोग तरस जाते हैँ..!!

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