क्या खूब मोहब्बत है तेरी… तोड़ा भी हमें छोड़ा भी हमें …
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आज होगा हिसाब
तुम कहां थे कहां रहे साहेब आज होगा हिसाब बरसों में
कब तक बाँटता रहू
मैं कब तक बाँटता रहू ख़ुदको , मुझे अपना भी तो हिस्सा रखना चाहिए ….
समन्दर के सफ़र में
समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए!!!
तो क्या करता
ना शाखों ने पनाह दी ना हवाओं ने संभाला वो पत्ता आवारा न बनता तो क्या करता
ख़ुशी मुझ को
उसकी जीत से होती है ख़ुशी मुझ को, यही जवाब मेरे पास है अपनी हार का !
जलाने के लिए
सूखे पत्ते की तरह बिखरे थे ए दोस्त, किसी ने समेटा भी तो जलाने के लिए !
नजर अंदाज क्यू
प्यार है तो नजरअंदाज क्यू करते हो… नहीं है तो हम पर नजरें क्यू रखते हो..
ना मोहब्बतें संभाली
ना मोहब्बतें संभाली गई ना ही नफरतें पाली गई है बड़ा अफ़सोस उस जिंदगी का जो तेरे पीछे खाली गई…!!
लिपट जाता हूँ माँ
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूँढती होगी तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है चमन… Continue reading लिपट जाता हूँ माँ