काश यह जालिम जुदाई

काश यह जालिम जुदाई न होती! ऐ खुदा तूने यह चीज़ बनायीं न होती! न हम उनसे मिलते न प्यार होता! ज़िन्दगी जो अपनी थी वो परायी न होती!

वो दर्द ही क्या

वो दर्द ही क्या जो आँखों से बह जाए! वो खुशी ही क्या जो होठों पर रह जाए! कभी तो समझो मेरी खामोशी को! वो बात ही क्या जो लफ्ज़ आसानी से कह जायें!

गैरों ने मारा

गैरों ने मारा या अपनों ने क्या फर्क पड़ता है मरना तो मुझे ही हर बार पड़ता है|

अँधेरे ही थे

अँधेरे ही थे मेरे अपने भी अब रौशनी पाने को जी चाहता है रहो में भटक रहा था में अब तक अब अपनी मंजिल पाने को जी चाहता है।

तुम्हें ख़बर नहीं है

तुम्हें ख़बर नहीं है तुम्हें सोचने की ख़ातिर बहुत से काम हम कल पर छोड़ देते है|

परेशान तो हम भी

परेशान तो हम भी बहुत हैं लेकिन मुस्कुरा के जीने में क्या जाता है!

कितना लुफ्त ले रहे है

कितना लुफ्त ले रहे है लोग मेरे इश्क का, बेवफा देख तूने तो मेरा तमाशा बना दिया|

अपने किरदार को

अपने किरदार को मौसम से बचाकर रखना लौट के फुलो में वापिस नही आती खुशबू|

मोहब्बत का अंजाम

मोहब्बत का अंजाम भी कुछ निराला सा है ! जब भी रूसवा होती है, सरे बाजार होती हैं !!

बस ये मत पूछिएगा

मुझे आप चाहिये… बस ये मत पूछिएगा कि क्यूँ ..!!

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