मजबूरी ने ही

मजबूरी ने ही मुझे उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया जहाँ तक नजर जाती है कुछ और ही नजर आता है।

तुम्हें ख़बर नहीं है

तुम्हें ख़बर नहीं है तुम्हें सोचने की ख़ातिर बहुत से काम हम कल पर छोड़ देते है|

खत्म कर दी थी

खत्म कर दी थी जिन्दगी की सब खुशियाँ तुम पर कभी फुर्सत मिले तो सोचना मुहब्बत किसने की थी…..

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