सुकून मिलता है दो लफ्ज कागज पर उतार कर। चीख भी लेता हूँ और आवाज भी नही आती।
Tag: शर्म शायरी
जिसे अपना चाँद
मैं जिसे अपना चाँद समझता था… उसने मोहल्ले के आधे से ज्यादा लड़के अंतरिक्ष यात्री बना रखे थे।
मेरी खुददारी तोले
मेरा मोल लगाने बैठे है कुछ लोग तिजोरी खोले़ दुनिया मे इतना धन कहा जो मेरी खुददारी तोले!!!!!!!!
मुसीबतों से उभरती है
मुसीबतों से उभरती है शख्सियत यारो… जो चट्टानों से न उलझे वो झरना किस काम का…
रिश्तों में विश्वास
अपनी कमजोरियां उन्ही लोगों को बताइये, जो हर हाल में आपके साथ मजबूती से खड़े होना जानते है” ” क्यूँकि रिश्तों में विश्वास , और मोबाईल में नेटवर्क ना हो, . . तो लोग Game खेलना शुरू कर देते हैं !!
ये सोच हमेशा
ये सोच हमेशा कायम रखना दोस्तों राह चलती अकेली लड़की मौका नहीं एक जिम्मेदारी है
हमसे बिछड़ के
हमसे बिछड़ के वहाँ से एक पानी की बूँद न निकली तमाम उम्र जिन आँखों को हम, झील कहते रहे।
जिंदगी में सिर्फ
उल्फ़त, मोहब्बत, अश्क, वफ़ा, अफ़साने.. लगता है वो आयी थी जिंदगी में सिर्फ ऊर्दू सिखाने।
रात भर चलती
रात भर चलती रहती है अब उंगलियाँ मोबाईल पर…! किताब सीने पर रखकर सोये हुए तो एक जमाना गुजर गया….!!!
दिल में चाहत
दिल में चाहत का होना भी लाज़मी है वरना, याद तो दुश्मन भी रोज़ किया करते है.