सब्र तहज़ीब है मुहब्बत की और तुम समझते रहे बेज़ुबान हैं हम
Tag: व्यंग्य शायरी
जो जिंदगी थी
जो जिंदगी थी मेरी जान..!तेरे साथ गई बस अब तू उम्र के नक़्शे में वक़्त भरना.!
शाम का वक्त
शाम का वक्त हो और ‘शराब’ ना हो…!इंसान का वक्त इतना भी ‘खराब’ ना हो..
संभाल के रखना
संभाल के रखना अपनी पीठ को यारो…. “‘शाबाशी’”और ‘खंजर’ दोनो वहीं पर मिलते है ….
मत पूछ मेरे जागने की
मत पूछ मेरे जागने की बजह ऐ-चांद, तेरा ही हमशक्ल है वो जो मुझे सोने नही देता….
तकिये के नीचे दबा कर
तकिये के नीचे दबा कर रखे है तुम्हारे ख़याल, एक तस्वीर , बेपनाह इश्क़ और बहुत सारे साल.
घुट घुट के जीता रहे
घुट घुट के जीता रहे फ़रियाद न करे, लाएँ कहाँ से, ऐसा दिल तुम्हें याद न करे…
देर तलक सोने की आदत
देर तलक सोने की आदत छूट गयी माँ का आँचल छूटा जन्नत छूट गयी बाहर जैसा मिलता है खा लेते हैं घर छूटा खाने की लज़्ज़त छूट गयी
दिल ऐसी शय नही जो
दिल ऐसी शय नही जो काबू में रह सके…समझाऊ किस कदर किसी बेखबर को मैं…!!
मुस्कुराहटे तो कई खरीदी थी.
मुस्कुराहटे तो कई खरीदी थी.. मेरे चेहरे पर कोई जंची ही नही..