अपनी यादों को ज़रा

समझा दो तुम, अपनी यादों को ज़रा… … वक़्त बे-वक़्त तंग करती हैं मुझे, कर्जदारों की तरह ।

बीच समंदर देख

मंजर का पसमंजर देख सहरा बीच समंदर देख……….! एक पल अपनी ऑंखें मूंद एक पल अपने अंदर देख…………!

वो भी आधी रात

वो भी आधी रात को निकलता है और मैं भी …… फिर क्यों उसे “चाँद” और मुझे “आवारा” कहते हैं लोग …. ?

अधूरी न लिखा कर

ए खुदा अगर तेरे पेन की श्याही खत्म है तो मेरा लहू लेले, यू कहानिया अधूरी न लिखा कर

तुझे भी इजाजत है

सब छोड़े जा रहे है आजकल हमें,,,,, ” ऐ जिन्दगी ” तुझे भी इजाजत है,,,, जा ऐश कर…ll

तेरी हो जाए

कभी आग़ोश में यूँ लो की ये रूँह तेरी हो जाए।

बुलंदी देर तक

बुलंदी देर तक किस शख्श के हिस्से में रहती है बहुत ऊँची इमारत हर घडी खतरे में रहती है ।

छोटे से दिल

इस छोटे से दिल में किस किस को जगह दूँ , गम रहे, दम रहे, फ़रियाद रहे, या तेरी याद रहे..

दिल उसकी याद में

रात भर जलता रहा ये दिल उसकी याद में , समझ नही आता दर्द प्यार करने से होता है या याद करने से …

आज कल हर इंसान

“समझदार” एक मै हूँ बाकि सब “नादान”.. बस इसी भ्रम मे घूम रहा आज कल हर “इंसान”.!!

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