सवाल ज़हर का

सवाल ज़हर का नहीं था वो तो हम पी गए तकलीफ लोगो को बहुत हुई की फिर भी हम कैसे जी गए|

उल्टी हो गईं

उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया देखा इस बीमारी-ए-दिल ने आख़िर काम तमाम किया|

बहुत देर करदी

बहुत देर करदी तुमने मेरी धडकनें महसूस करने में..!​ . ​वो दिल नीलाम हो गया, जिस पर कभी हकुमत तुम्हारी थी..!​

तेरी ख़ुशी की खातिर

तेरी ख़ुशी की खातिर मैंने कितने ग़म छिपाए….., अगर….,, . मैं हर बार रोता तो सारा शहर डूब जाता….

सारे मुसाफिरों से

सारे मुसाफिरों से ताल्लुक निकल पड़ा गाड़ी में इक शख्स ने अखबार क्या लिया…

इश्क का समंदर

इश्क का समंदर भी क्या समंदर है, जो डूब गया वो आशिक जो बच गया वो दीवाना…

चाँद बताने के वास्ते

अपने दिए को चाँद बताने के वास्ते, . बस्ती का हर चराग बुझाना पड़ा हमे

है याद मुलाकत की वो शाम..

है याद मुलाकत की वो शाम… अभी तक… तुझे भूलने में हूँ नाकाम अभी तक|

पुछा उसने मुझे

पुछा उसने मुझे कितना प्यार करते हो… मै चुप रहा यारो क्योकि मुझे तारो की गिनती नही आती|

सोचा था की अच्छा है

सोचा था की अच्छा है न गिला पहुंचे, न मलाल पहुंचे, बिछडे तो ये आलम है न दुआ पहुंचे,न सलाम पहुंचे…!!

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