मँज़िलें बड़ी ज़िद्दी होती हैँ , हासिल कहाँ नसीब से होती हैं ! मगर वहाँ तूफान भी हार जाते हैं , जहाँ कश्तियाँ ज़िद पर होती हैं !
Tag: शर्म शायरी
अब ना करूँगा
अब ना करूँगा अपने दर्द को बया किसी के सामने, दर्द जब मुझको ही सहना है तो तमाशा क्यूँ करना…!!!
बड़ी मुश्किल से
बड़ी मुश्किल से सीखी थी बेईमानी हमने सब बेकार हो गयी, अभी तो पूरी तरह सीख भी ना पाए थे की सरकारें ईमानदार हो गयी..
काफ़िर है तो शमशीर पे
काफ़िर है तो शमशीर पे करता है भरोसा, मोमिन है तो बे-तेग़ भी लड़ता है सिपाही…
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर
उम्र भर कुछ ख़्वाब दिल पर दस्तकें देते रहे, हम कि मजबूर-ए-वफ़ा थे आहटें सुनते रहे…
बेचैनी खरीदते हैं
बेचैनी खरीदते हैं,बेचकर सुकून, है इस तरह का आजकल जीने का जुनून।
तमाम उम्र तेरा
तमाम उम्र तेरा इंतिज़ार कर लेंगे मगर ये रंज रहेगा कि ज़िंदगी कम है|
लाख हुस्न-ए-यकीं
लाख हुस्न-ए-यकीं से बढकर है।। इन निगाहों की बदगुमानी भी।।
आया न एक बार भी
आया न एक बार भी अयादत को वह मसीह, सौ बार मैं फरेब से बीमार हो चुका।
आज शाम महफिल सजी थी
आज शाम महफिल सजी थी बददुआ देने की…. मेरी बारी आयी तो मैने भी कह दिया… “उसे भी इश्क हो” “उसे भी इश्क हो”