मंजर का पसमंजर देख सहरा बीच समंदर देख……….! एक पल अपनी ऑंखें मूंद एक पल अपने अंदर देख…………!
Tag: शर्म शायरी
वो भी आधी रात
वो भी आधी रात को निकलता है और मैं भी …… फिर क्यों उसे “चाँद” और मुझे “आवारा” कहते हैं लोग …. ?
अधूरी न लिखा कर
ए खुदा अगर तेरे पेन की श्याही खत्म है तो मेरा लहू लेले, यू कहानिया अधूरी न लिखा कर
तुझे भी इजाजत है
सब छोड़े जा रहे है आजकल हमें,,,,, ” ऐ जिन्दगी ” तुझे भी इजाजत है,,,, जा ऐश कर…ll
तेरी हो जाए
कभी आग़ोश में यूँ लो की ये रूँह तेरी हो जाए।
बुलंदी देर तक
बुलंदी देर तक किस शख्श के हिस्से में रहती है बहुत ऊँची इमारत हर घडी खतरे में रहती है ।
छोटे से दिल
इस छोटे से दिल में किस किस को जगह दूँ , गम रहे, दम रहे, फ़रियाद रहे, या तेरी याद रहे..
अब उठती नहीं हैं
अब उठती नहीं हैं आँखें, किसी और की तरफ … पाबन्द कर गयीं हैं शायद, किसी की नज़रें मुझे !
दिल उसकी याद में
रात भर जलता रहा ये दिल उसकी याद में , समझ नही आता दर्द प्यार करने से होता है या याद करने से …
आज कल हर इंसान
“समझदार” एक मै हूँ बाकि सब “नादान”.. बस इसी भ्रम मे घूम रहा आज कल हर “इंसान”.!!