कल ही तो तौबा की मैंने शराब से… कम्बख्त मौसम आज फिर बेईमान हो गया।।
Tag: व्यंग्य
मुस्कुरा जाता हूँ
मुस्कुरा जाता हूँ अक्सर गुस्से में भी तेरा नाम सुन कर, तेरे नाम से इतनी मोहब्बत है तो सोच तुझसे कितनी होगी..
सहम उठते हैं
सहम उठते हैं कच्चे मकान, पानी के खौफ़ से… महलों की आरज़ू ये है की, बरसात तेज हो….
सिर्फ मोहब्बत ही
सिर्फ मोहब्बत ही ऐसा खेल है.. जो सीख जाता है वही हार जाता है।
किसी ने मुझसे पूछा
किसी ने मुझसे पूछा कि तुम्हारा अपना कौन है… मैने हँसते हुए कहा.. जो किसी और के लिए मुझे नज़र अंदाज़ ना करे
कोई ना दे
कोई ना दे हमें खुश रहने की दुआ, तो भी कोई बात नहीं वैसे भी हम खुशियाँ रखते नहीं, बाँट दिया करते है…i
कुछ मीठा सा
कुछ मीठा सा नशा था उसकी झुठी बातों में; वक्त गुज़रता गया और हम आदी हो गये!
ना ढूंढ मेरा किरदार
ना ढूंढ मेरा किरदार दुनिया के हुजूम में, “वफ़ादार” तो हमेशा तनहा ही मिलते हैँ…
मेरी बेफिक्र अदा से
मेरी बेफिक्र अदा से लोगों में गलतफहमी बेहिसाब है, उन्हें क्या मालूम, मेरा वजूद फिक्र पर लिखी गई इक किताब है…!
जिसकी याद में
मुद्दतों जिसकी याद में आंख की नमी ना गयी , उसकी ही बातें आज हमें मतलबी ठहरा गयी…