दर्द छुपाना भी

दर्द छुपाना भी एक हुनर है, वरना नमक तो हर मुठी में है..!!

कब लोगों ने

कब लोगों ने अल्फ़ाज़ के पत्थर नहीं फेंके वो ख़त भी मगर मैंने जला कर नहीं फेंके ठहरे हुए पानी ने इशारा तो किया था कुछ सोच के खुद मैंने ही पत्थर नहीं फेंके इक तंज़ है कलियों का तबस्सुम भी मगर क्यों मैंने तो कभी फूल मसल कर नहीं फेंके वैसे तो इरादा नहीं… Continue reading कब लोगों ने

एक नया दर्द

एक नया दर्द एक नया दाग़ मेरे सीने में छोड़ देती है… रातें अक्सर मेरे कमरे की दहलीज़ पर ही दम तोड़ देती है|

बदल जाते हैं

बदल जाते हैं वो लोग वक्त की तरह; जिन्हें हद से ज्यादा वक्त दिया जाता है!

ना ढूंढ मेरा किरदार

ना ढूंढ मेरा किरदार दुनिया के हुजूम में, “वफ़ादार” तो हमेशा तनहा ही मिलते हैँ…

वो जो निकले थे

वो जो निकले थे घर से मशालें लेकर बस्तियां फूकने, अँधेरे मकान में अपनों को अकेला छोड़ आये हैं|

रात थी और स्वप्न था

रात थी और स्वप्न था तुम्हारा अभिसार था ! कंपकपाते अधरद्व्य पर कामना का ज्वार था ! स्पन्दित सीने ने पाया चिरयौवन उपहार था , कसमसाते बाजुओं में आलिंगन शतबार था !! आखेटक था कौन और किसे लक्ष्य संधान था ! अश्व दौड़ता रात्रि का इन सबसे अनजान था ! झील में तैरती दो कश्तियों… Continue reading रात थी और स्वप्न था

सज़ा ये दी है

सज़ा ये दी है कि आँखों से छीन लीं नींदें , क़ुसूर ये था कि जीने के ख़्वाब देखे थे|

मालूम हमें भी है

मालूम हमें भी है बहुत से तेरे किस्से, पर बात हमसे उछाली नहीं जाती..

वक़्त का फेर

वक़्त का फेर वक़्त है ढल चुका और ढल चुका वो दौर भी…. फ़िर भी आइने में, वक़्त पुराना ढूंढते हैं !! महफिलें सजती थीं जहाँ दोस्तों के कहकहों से…. दीवारों-दर पे, उनके निशान ढूंढते हैं !! कुछ दर्द वक़्त ने तो कुछ हैं अपनों ने दिए…. अकेले आज भी, दिल के टूकड़ों को जोड़ते… Continue reading वक़्त का फेर

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