रिश्तों में इतनी बेरुख़ी भी अच्छी नहीं हुज़ूर.. देखना कहीं मनाने वाला ही ना रूठ जाए तुमसे..!!
Tag: पारिवारिक शायरी
रात हुई और सो गए
वो बचपने की नींद तो अब ख़्वाब हो गई क्या उम्र थी कि रात हुई और सो गए ।
ख्वाहिशों का बोझ
उनका कन्धा ना जाने ईश्वर ने कितना मजबूत बनाया है, मेरी ख्वाहिशों का बोझ उठाते हुए माँ ने कभी उफ़ तक नहीं किया….
देखा जो तीर
देखा जो तीर खा के, दुश्मनों की तरफ़.. अपने ही दोस्तों से मुलाकात हो गई..
घर नहीं मिला
दर दर भटक रही थी पर दर नहीं मिला, उस माँ के चार बेटे हैं पर रहने को घर नहीं मिला।
बचपन में जब
बचपन में जब चाहा हँस लेते थे, जहाँ चाहा रो सकते थे. अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए, अश्कों को तनहाई ..
इस बनावटी दुनिया में
इस बनावटी दुनिया में कुछ सीधा सच्चा रहने दो, तन वयस्क हो जाए चाहे, दिल तो बच्चा रहने दो, नियम कायदो की भट्टी में पकी तो जल्दी चटकेगी, मन की मिट्टी को थोडा सा तो गीला, कच्चा रहने दो|
तरस जाओगे हमारे
तरस जाओगे हमारे लबों से सुनने को एक एक लफ़्ज़, प्यार की बात तो क्या हम शिकायत भी नहीं करेंगे
ये है ज़िन्दगी
ये है ज़िन्दगी किसी के घर आज नई कार आई और किसी के घर मां की दवाई उधार आई..
फिर से बचपन
फिर से बचपन लौट रहा है शायद, जब भी नाराज होता हूँ खाना छोड़ देता हूँ.!!