हँसकर कबूल क्या करलीं

हँसकर कबूल क्या करलीं, सजाएँ मैंने……. ज़माने ने दस्तूर ही बना लिया, हर इलज़ाम मुझ पर लगाने का……

ज्यादा कुछ नही

ज्यादा कुछ नही बदला उम्र बढ़ने के साथ… बचपन की जिद समझौतों में बदल गयी…!!

तेरा हाथ छूट जाने से

तेरा हाथ छूट जाने से डरता हूँ मैं दिल के टूट जाने से डरता हूँ|

कभी-कभी बहुत सताता है

कभी-कभी बहुत सताता है यह सवाल मुझे.. हम मिले ही क्यूं थे जब हमें मिलना ही नहीं था…

यही हुस्नो-इश्क का राज है

यही हुस्नो-इश्क का राज है कोई राज इसके सिवा नहीं जो खुदा नहीं तो खुदी नही, जो खुदी नहीं तो खुदा नहीं

आज यह दीवार

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी…. शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए…

खामोशियाँ ही बेहतर हैँ

खामोशियाँ ही बेहतर हैँ जिन्दगी के सफर मेँ….. शब्दों की मार नेँ कई घर तबाह किये हैँ…..

सोचता हूँ गिरा दूँ

सोचता हूँ गिरा दूँ सभी रिश्तों के खंडहर , इन मकानो से किराया भी नहीं आता है ….!!

नया कुछ भी नहीं

नया कुछ भी नहीं हमदम, वही आलम पुराना है; तुम्हीं को भुलाने की कोशिशें, तुम्हीं को याद आना है…

एक तो उसकी पाजेब

एक तो उसकी पाजेब भी जानलेवा थी ऊपर से ज़ालिम ने पैरों में मेहन्दी रचाई है

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