दो गज़ ज़मीन नसीब हो गयी

दो गज़ ज़मीन नसीब हो गयी यही बहुत है, सिकंदरो को अब जहान सारा मुबारक हो|

हर रात मैं लिखूं….

हर रात मैं लिखूं…. ज़रूरी तो नहीं…. कभी-कभी लफ्ज़ भी सोया करते है…

टूट पड़ती थीं

टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देखकर वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए|

छोड़ ये बात

छोड़ ये बात,… मिले जख्म,….. मुझे कहां से, ऐ ज़िन्दगी इतना बता, कितना सफर बाकी है…

पलको पे बिठा के

पलको पे बिठा के रखेगे ससुराल वाले…. मालूम ना था बाबा भी झूठ बोलेगे…..

सुनते आये है

सुनते आये है की पानी से कट जाते है पत्थर, शायद मेरे आँसुओं की धार ही थोड़ी कम रही होगी..!

क्या किस्मत पाई है

क्या किस्मत पाई है रोटीयो ने भी निवाला बनकर रहिसो ने आधी फेंक दी, गरीब ने आधी में जिंदगी गुज़ार दी!!

हर मर्ज की दवा है

हर मर्ज की दवा है वक्त .. कभी मर्ज खतम, कभी मरीज खतम..।

गिनती तो नहीं याद

गिनती तो नहीं याद, मगर याद है इतना सब ज़ख्म बहारों के ज़माने में लगे हैं…

तुम निकले ही थे

तुम निकले ही थे बन-सँवर कर मैं मरता नहीं तो क्या करता…

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