कम बिकता हूं

छोटे शहर के अखबार जैसा हूं मैं,, दिल से लिखता हूं, शायद इसलिए कम बिकता हूं..!

मासूमियत खो दी है

फरेबी हूँ, जिद्दी हूँ, और पत्थर दिल भी हूँ , मासूमियत खो दी है मैंने, वफा करते करते….

काश वो नया

काश वो नया तरीका-ऐ-क़त्ल इज़ाद करें, मर जाऊ हिचकियों से वो इस कदर याद करें।

देख रहीं हैं

देख रहीं हैं खामोश नज़रें तुम्हारा झूठ का नज़रअंदाज़ करना…!!

तेरा ऐसे आने से

ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा ऐसे आने से तो बेहतर था न आना तेरा।।।।

जो दिखता तुझसा है

मालूम नहीं है मुझको हुस्न की तारीफ मगर मेरे लिए हर वो शख्स खूबसूरत है जो दिखता तुझसा है

वक्त ही ना मिले

खुद की तरक्की में इतना समय लगा दो की किसी ओर की बुराई का वक्त ही ना मिले…… “क्यों घबराते हो दुख होने से, जीवन का प्रारंभ ही हुआ है रोने से.. नफरतों के बाजार में जीने का अलग ही मजा है… लोग “रूलाना” नहीं छोडते… और हम ” हसना” नहीं……

पसीना बना दे

मुकद्दर एक रोज जरुर बदलेगा बस इतना कर, जिस्म मैं दौड़ते लहू को माथे का पसीना बना दे

शिकायते तो बहुत है

शिकायते तो बहुत है तुझसे ए जिन्दगी; पर जो दिया तूने, वो भी बहुतो को नसीब नही….

कितना मुश्किल है

कितना मुश्किल है मनाना उस शख्स को .. !! जो रूठा भी ना हो और बात भी ना करे .. !!

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