उम्दा सारी आदतें, फूटे हुए नसीब। कच्चे धागे से हुई, माला बेतरतीब।।
Category: Shayari
बिछड़कर फिर मिलेंगे
बिछड़कर फिर मिलेंगे यकीन कितना था… बेशक ख्वाब ही था मगर.. हसीन कितना था…
मुकद्दर की लिखावट
मुकद्दर की लिखावट का एक ऐसा भी कायदा हो, देर से क़िस्मत खुलने वालों का दुगुना फ़ायदा हो।
बर्बाद करना था
बर्बाद करना था तो किसी और तरीके से करते। जिंदगी बनकर जिंदगी ही छीन ली।
ना कोई ख्वाहिश..
ना कोई ख्वाहिश.. …….ना कोई आरजू.. थोड़ी बेमतलब सी है जिंदगी.. फिर भी जीना अच्छा लगता है..।
वो एक रात जला……
वो एक रात जला……. तो उसे चिराग कह दिया !!! हम बरसो से जल रहे है ! कोई तो खिताब दो .!!!
बहते पानी की तरह
बहते पानी की तरह है फितरत- ए-इश्क, रुकता नहीं,थकता नहीं,थमता नहीं, मिलता नहीं…
सिर्फ नाम लिख देने से
सिर्फ नाम लिख देने से शायरी अपनी नहीं हो जाती, दिल तुड़वाना पड़ता है कुछ दिल से लिखने के लिये !!
छत कहाँ थी
छत कहाँ थी नशीब में, फुटपाथ को जागीर समझ बैठे। गीले चावल में शक्कर क्या गिरी ,बच्चे खीर समाज बैठे।
मुझे मेरे अंदाज मे
मुझे मेरे अंदाज मे ही चाहत बयान करने दे…. बड़ी तकलीफ़ से गुजरोगे जब ….. तुझे तेरे अंदाज़ में चाहेंगे……