जहाँ हमारा स्वार्थ समाप्त होता हे, वही से हमारी इंसानियत आरम्भ होती हे..
Category: Sad Shayri
बिन धागे की सुई
बिन धागे की सुई सी बन गई है ये ज़िंदगी , सिलती कुछ नहीं… बस चुभती चली जा रही है…
आशिक था एक
आशिक था एक मेरे अंदर, कुछ साल पहले गुज़र गया..!! अब कोई शायर सा है, अजीब अजीब सी बातें करता है…
रिश्ते टूट न जायें
रिश्ते टूट न जायें इस डर से बदल लिया है खुद को, अपनी ज़िद से ज्यादा रिश्तों को अहमियत दी है मैंने !!
तुझे रात भर
तुझे रात भर ऐसे याद किया मैंने… जैसे सुबह इम्तेहान हो मेरा ।
ये जरूरी तो नहीं
ये जरूरी तो नहीं कि उम्र भर प्यार के मेले हों हो सकता है कभी हम तुम अकेले हों.
ज़ुल्फ़-ए-दराज़
यार का ज़ुल्फ़-ए-दराज़ में लो आप अपने दम में सय्याद आ गया..
जिंदा रहने पे
जिंदा रहने पे तवज्जो ना कोई मिल पाई.. कत्ल होके मै,,, एक शहर के अखबार में हूँ..
मोहब्बत ही में मिलते हैं
मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम, मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है !!
बेच डाला है
बेच डाला है, दिन का हर लम्हा; रात, थोड़ी बहुत हमारी है!