इश्क की पतंगे

इश्क की पतंगे उडाना छोड़ दी वरना हर हसीनाओं की छत पर हमारे ही धागे होते …!

मुहब्बत नही होती

तुम तो कहते थे मुहब्बत नही होती कुछ भी तुमने क्युँ हाल बनाया है फकीरों जैसा

शहर उजड़ जाते हैं।

भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं।

कोई मौजूद है

ख़ाक उड़ती है रात भर मुझ में… कौन फिरता है दर-बदर मुझ में.. ! . मुझ को मुझ में जगह नहीं मिलती… कोई मौजूद है इस क़दर मुझ में।

वों हमसे खफ़ा हैं..

आज फिर वों हमसे खफ़ा हैं…… “खैर” कौन सा यें पहली दफ़ा हैं?

उम्र बीत गयी

उम्र बीत गयी पर एक जरा सी बात समझ नही आई..!! हो जाये जिन से मोहब्बत वो लोग कदर क्यों नही करते..!

ख़फा होता है जो

ख़फा होता है जो, वो ही अपनी दौलत है बाक़ी तो सजावटी लिफाफे अक़सर ख़ाली ही होते हैं

औकात बता दी

आँधियों ने लाख बढ़ाया हौसला धूल का… दो बूँद बारिश ने औकात बता दी !

किसकी पनाह में

किसकी पनाह में तुझको गुज़ारे” ऐ जिंदगी “, अब तो रास्तों ने भी कह दिया है ,कि घर क्यों नहीं जाते..

थोडा हुन्नर दे

तारीफे समझ नही आती है उन्हें । ऐ-खुदा, मेरे प्यार को भी मोहब्बत में थोडा हुन्नर दे ।।

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