कोई मौजूद है

ख़ाक उड़ती है रात भर मुझ में…
कौन फिरता है दर-बदर मुझ में.. !
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मुझ को मुझ में जगह नहीं मिलती…
कोई मौजूद है इस क़दर मुझ में।

उम्र बीत गयी

उम्र बीत गयी पर एक जरा सी बात
समझ नही आई..!!
हो जाये जिन से मोहब्बत वो लोग
कदर क्यों नही करते..!

किसकी पनाह में

किसकी पनाह में तुझको गुज़ारे” ऐ जिंदगी “,
अब तो रास्तों ने भी कह दिया है ,कि घर क्यों नहीं जाते..