सोचा ना था

सोचा ना था ज़िंदगी ऐसे फिर से मिलेगी जीने के लिये, आँख को प्यास लगेगी अपने ही आँसू पीने के लिये…!!!

तुम ये ग़लत

तुम ये ग़लत कहते हो कि मेरा कुछ पता नहीं है तुमने ढूँढा ही नहीं मुझे ढूँढ ने की हद तक

यही बस सोचकर

यही बस सोचकर के हम सफाई दे नहीं पाए…. भले इल्जाम झूठा है, मगर तुमने लगाया है

करवटें बदलता रहा

करवटें बदलता रहा बिस्तर में यू ही रात भर, पलकों से लिखता रहा तेरा नाम चाँद पर ॥

सुकून मिलता है

सुकून मिलता है दो लफ्ज कागज पर उतार कर। चीख भी लेता हूँ और आवाज भी नही आती।

फिर से सूरज

फिर से सूरज लहूलुहान समंदर में गिर पड़ा, दिन का गुरूर टूट गया और फिर से शाम हो गई .

जिसे अपना चाँद

मैं जिसे अपना चाँद समझता था… उसने मोहल्ले के आधे से ज्यादा लड़के अंतरिक्ष यात्री बना रखे थे।

मेरी खुददारी तोले

मेरा मोल लगाने बैठे है कुछ लोग तिजोरी खोले़ दुनिया मे इतना धन कहा जो मेरी खुददारी तोले!!!!!!!!

जब मैं डूबा

जब मैं डूबा तो समंदर को भी हैरत हुई …… कितना तन्हा शख़्स है, किसी को पुकारता भी नही…..

दिल्लगी नहीं हमारी

दिल्लगी नहीं हमारी शायरी जो किसी हुस्न पर बर्बाद करें,यह तो एक शमा है जो आपके नूर का कयाम है. दिल ❤से?

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