जाने कभी गुलाब लगती हे जाने कभी शबाब लगती हे तेरी आखें ही हमें बहारों का ख्बाब लगती हे में पिए रहु या न पिए रहु, लड़खड़ाकर ही चलता हु क्योकि तेरी गली कि हवा ही मुझे शराब लगती हे
Category: लव शायरी
जिँदगी नहीं लिखी
कमी तेरे नसीबों में रही होगी, कि जिँदगी नहीं लिखी तेरे संग बिताने को.. . . . मैने तो हर संभव कोशिश की, तुझे अपना बनाने को..!!
एक रोज इश्क़ हुआ..
नजर, नमाज, नजरिया.. सब कुछ बदल गया… एक रोज इश्क़ हुआ… और मेरा खुदा बदल गया..!!
सोचा ना था
सोचा ना था ज़िंदगी ऐसे फिर से मिलेगी जीने के लिये, आँख को प्यास लगेगी अपने ही आँसू पीने के लिये…!!!
तुम ये ग़लत
तुम ये ग़लत कहते हो कि मेरा कुछ पता नहीं है तुमने ढूँढा ही नहीं मुझे ढूँढ ने की हद तक
यही बस सोचकर
यही बस सोचकर के हम सफाई दे नहीं पाए…. भले इल्जाम झूठा है, मगर तुमने लगाया है
करवटें बदलता रहा
करवटें बदलता रहा बिस्तर में यू ही रात भर, पलकों से लिखता रहा तेरा नाम चाँद पर ॥
सुकून मिलता है
सुकून मिलता है दो लफ्ज कागज पर उतार कर। चीख भी लेता हूँ और आवाज भी नही आती।
फिर से सूरज
फिर से सूरज लहूलुहान समंदर में गिर पड़ा, दिन का गुरूर टूट गया और फिर से शाम हो गई .
जिसे अपना चाँद
मैं जिसे अपना चाँद समझता था… उसने मोहल्ले के आधे से ज्यादा लड़के अंतरिक्ष यात्री बना रखे थे।