एक से घर हैं सभी एक से हैं बाशिंदे अजनबी शहर में कुछ अजनबी लगता ही नहीं
Category: व्यंग्य शायरी
नजर आये कैसे
अपने चहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे तेरी मर्जी के मुताबिक़ नजर आये कैसे
किरदार की मोहताज नहीं
तेरे वादे तेरे प्यार की मोहताज नहीं ये कहानी किसी किरदार की मोहताज नहीं
ख़ुशी के चार झोंके
अरे ओ आसमां वाले बता इसमें बुरा क्या है ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुजर जाएँ
तुझे अपना सोचकर..
तू मिले या ना मिले….. ये मेरे मुकद्दर की बात है, “सुकून” बहुत मिलता है….. तुझे अपना सोचकर..
उनके सामने जाऊं
नही पाता सहेज खुद को क्या उनके सामने जाऊं____बड़ी मुश्किल से संभला हूँ मुझे आबाद रहने दो…!!
हमारी आरजूओं ने
हमारी आरजूओं ने हमें इंसान बना डाला; वरना जब जहां में आये थे, बन्दे थे खुदा के
रास्ते बन जाते है
हुनर का दरिया है हम. …. जिस तरफ मुँह करले …. रास्ते बन जाते है ।।।
मेरे करीब आते है
मै जानता हूँ वा कयाें ऱूठ जाते है, वाे ईस तरीके से भी मेरे करीब आते है..!!
तू बदल गई है।
तेरी तलाश में निकलू भी तो कैसे…तू बदल गई है।बिछड़ी होती तो और बात थी।।